Monday, January 15, 2018

उत्तरप्रदेश राज्य सूचना आयोग के विकेन्द्रीयकरण के सम्बन्ध में -आर.टी. आई कॉउन्सिल ऑफ यू.पी. के संरक्षक बिमल कुमार खेमानी ने सरकार को लिखा पत्र

दिनांक : १५ जनवरी २०१८
श्री आदित्यनाथ योगी जी ,
मुख्य मंत्री , उत्तरप्रदेश शासन , लखनऊ
       विषय : उत्तरप्रदेश राज्य सूचना आयोग के विकेन्द्रीयकरण  के सम्बन्ध में
मान्यवर ,
सरकारी तन्त्र के कार्यकलापो में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से प्रचलन आया सूचना अधिकार अधिनियम २००५ काफी हद तक सफल रहा है किन्तु आफिसियल सीक्रेसी एक्ट के सुरक्षा कवच की यादो को कुछ अधिकारी अभी भी संजो कर रखना चाहते है और अवसर मिलने पर इस कानून की महत्त्वपूर्ण धाराओ को कुन्द करने की हर चेष्टा करते रहते है जिससे अनेको भ्रष्टाचार के मामले  उजागर न हो I विभागीय अधिकारी , नामित जन सूचना अधिकारी या प्रथम अपीलीय अधिकारी सूचनाओं को दबाने की
हर सम्भव चेष्टा करते रहते है I
इन हालातो में राज्य सूचना आयोग की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाती है I किन्तु वहाँ भी एक तरह से आवेदकों की इच्छा शक्ति की परीक्षा लेने का ही काम होता है और सुनवाई के लिए दीवानी न्यायालयों की तर्ज पर तारीख पर तारीख पड़ती रहती है I किसी वजह से यदि आवेदनकर्ता तारीख पर हाजिर नहीं होता है तब उसकी अपील , अपील में दिए गए तथ्यों एवम गुण दोष के आधार पर निर्णय
करते हुवे , विभागों के पक्ष में बिना  सूचना प्रदान करवाए ही प्रायः खारिज कर दी जाती है I
महोदय , केन्द्रीय सूचना आयोग में सभी सुनवाई वीडियो कांफ्रेंस के जरिये की जाती है जिससे सभी के समय और पैसे बच जाते है वहीँ महाराष्ट्र जैसे राज्य ने अपने यहाँ सूचना आयोग की अनेको  पीठे बना
रखी है जिससे आवेदक हो या सरकारी अधिकारी सुबह निकलकर शाम को अपने घर वापस आ सकते है
टेक्नालाजी के इस युग में भारत सरकार ने सभी जिलो के मुख्यालयों में NIC के केंद्र और स्टूडियो स्थापित कर रखे है जिनका उपयोग उत्तरप्रदेश राज्य सुचना आयोग में भी प्रारम्भ करवाकर जनता को राहत प्रदान करने के साथ साथ सरकारी कोष एवम अधिकारियों के समय में भी बचत हो सकती है I वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर माह में एक बार सुनवाई हेतु राज्य सूचना आयोग के आयुक्त मण्डल
स्तर पर उस मण्डल की सुनवाई हेतु आ सकते है I
आशा है वृहत्तर जनहित में आप किसी एक विकल्प पर विचार कर आवश्यक आदेश पारित करने की कृपा करेंगे I
धन्यवाद सहित
भवदीय

बिमल कुमार खेमानी , संरक्षक *** ई विक्रम सिंह , अध्यक्ष






BIMAL KUMAR KHEMANI,
TRAP group of RTI activists
 ALIGARH (U.P.)
 Mob: 094122 24625  ,  093597 24625
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Saturday, January 13, 2018

Explain delay in transferring RTI applications

Latest Order Passed By Chief Information Commissioner RK Mathur has directed the Prime Minister's Office to explain the delay in transferring RTI applications to departments concerned matters relating to the appointment of information commissioners, proposed RTI rules, among others.
According to the Right to Information Act, when an application is made to a public authority requesting for an information -- which is held by another public authority or the subject matter of which is more closely connected with the functions of another public authority, the application is transferred.

"Provided that the transfer of an application pursuant to this sub-section shall be made as soon as practicable but in no case later than five days from the date of receipt of the application," Section 6(3) of the RTI Act states.

The orders came on petitions of Commodore Lokesh Batra (retd), who had sought to know the details of the file notings related to the appointment of information commissioners, proposed RTI rules, 2017 and a travel bill of the Prime Minister through his four RTI applications.

 यह एक व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त तथ्य है कि सुशासन के लिए पारदर्शिता और खुलेपन महत्वपूर्ण पूर्व-आवश्यकताएं हैं। आरटीआई कानून एक हकदार रहा है, जिसने हमारे देश में शासन के मुक्त और खुले व्यवस्था का इरादा रख लिया है। सरकार के कामकाज में सुधार के लिए अधिनियम के कई उपयोग इतने विशाल हैं कि वे गणन को चुनौती देते हैं। आरटीआई कानून के कार्यान्वयन को सरकार की मंशा के रूप में देखा जाता है, जो खुद को जांच करने के लिए खुले रखता है, और इसलिए जवाबदेही। आरटीआई अधिनियम - सूचना आयोग - के तहत अभियोजकों का प्रभावी कार्य देश में पारदर्शिता व्यवस्था के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए यह गंभीर चिंता का मामला है कि भारत के केंद्रीय सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त का पद 22 अगस्त 2014 से खाली पड़ा है। यह 2005 में केंद्रीय सूचना आयोग के गठन के बाद पहली बार है, कि आयोग निर्बाध है